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किसी भी संस्था के जन्म के मूल में क्रांति का बीज अवश्य रहता है। बिना इस बुनियाद के संस्था का जन्म होना सम्भव नहीं होता। आज से लगभग 115 वर्ष पूर्व भारत का दिगम्बर जैन समाज अत्यंत बिखरा हुआ समाज था, हालांकि विज्ञान के साधनों ने समय और क्षेत्र की दूरी को कम करना प्रारंभ कर दिया था। अतः समाज के साधन सम्पन्न होते हुए भी यह बात खटकती थी कि हमारा अखिल भारतीय स्तर का संगठन कैसे गठित हो ? समय की मांग के अनुसार दिगम्बर जैन समुदाय में भी इस भावना का समावेश हुआ और यह भावना कार्य रूप में परिणत होने के आसार नजर आने लगे और समाज के सहयोग को पाकर महासभा ने एक विशाल वट वृक्ष का रूप लिया और समस्त दिगम्बर जैन समाज उसी की छत्र छाया में अपनी धार्मिक सामाजिक गतिविधियों को निरंतर आगे बढ़ाने में प्रगतिशील हुआ। दिगम्बर जैन समाज एक महत्वपूर्ण एवं अल्पसंख्यक समाज है, किन्तु उसके अनुयायी पूर्व से पश्चिम और दक्षिण से उत्तर तक व्यापक रूप से फैले हुये हैं। जैन समाज व्यवसायिक तथा औद्योगिक क्षेत्र में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है, वहां के देशकाल के प्रभाव से अवश्य प्रभावित होता है, परन्तु उसके धर्म के मूल सिद्धांत, रीति-रिवाज आदि उसकी संस्कृति के अनुकूल अक्षुण्ण रहते हैं, इन्हीं धर्म के मूल सिद्धांतों, रीति-रिवाजों, संस्कृतियों और उन्हीं तत्वों की रक्षा के लिए ही ‘श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन (धर्म संरक्षिणी) महासभा’ का जन्म हुआ। श्री जम्बू स्वामी भगवान की निर्वाण भूमि चैरासी मथुरा (उ.प्र.) में कार्तिक का मेला पड़ता है। इसी अवसर को मूर्तरूप देने के लिए उपयुक्त समझा गया और विक्रम सम्वत् 1949 सन् 1894 में महासभा की नींव डाली गयी। इसके प्रथम सभापति इण्डियन नेशनल कांग्रेस के संस्थापक सदस्य मथुरा के सेठ लक्ष्मण दास जी, उपसभापति सहारनपुर के लाला अग्रसेन जी रईस और मंत्री पं. छेदालाल जी चुने गये। इनके नेतृत्व में विक्रम सम्वत् 1952 सन् 1894 में दिगम्बर जैन समाज के प्रबुद्ध कर्णधारों द्वारा महासभा की स्थापना श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र चैरासी मथुरा (उ.प्र.) में की गई। महासभा को दिगम्बर जैन परम्परा के 20वीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज एवं आचार्यों - आचार्य श्री वीरसागरजी महाराज, आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी महाराज, आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज, आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज, आचार्य श्री देशभूषणजी मुनिराज, आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज, आचार्य श्री सन्मतिसागरजी महाराज, आचार्य श्री अजितसागरजी महाराज, सिद्धांत चक्रवर्ती श्री विद्यानंदजी मुनिराज, आचार्य श्री वर्धमानसागरजी महाराज, आचार्य श्री बाहुबली सागरजी महाराज, आचार्य श्री कुन्थुसागरजी महाराज, आचार्य श्री पुष्पदंत सागरजी महाराज, आचार्य श्री देवनंदीजी महाराज, आचार्य श्री पदमनंदीजी महाराज, आचार्य श्री कनकनन्दीजी महाराज, आचार्य श्री श्रेयांससागरजी महाराज, आचार्य श्री अभिनंदनसागरजी महाराज, आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज, आर्यिकारत्न श्री इन्दुमति माताजी, आर्यिका श्री विमल मति माताजी, आर्यिका गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमति माताजी, आर्यिका गणिनी श्री सुपाश्र्वमति माताजी, आर्यिका गणिनी श्री विशुद्धमति माताजी (सतना), आर्यिका गणिनी श्री विजयमति माताजी एवं आर्यिका गणिनी श्री विशुद्धमति माताजी (एटा) तथा समस्त मुनि संघांे, आर्यिका संघों, ऐलकों, क्षुल्लकों, भट्टारकों का आशीर्वाद व सकल भारतवर्षीय चतुर्विध संघ का सतत् सहयोग प्राप्त करने का सौभाग्य रहा है।