Our Achievements
तीर्थ संरक्षिणी महासभा की प्रमुख उपलब्धियॉं/गतिविधियॉं एवं जीर्णोद्धार हेतु भेजे गए फन्ड का विवरण
प्राचीन उपेक्षित तीर्थों/मन्दिरों/मूर्तियों/कलाकृतियों/पाण्डुलिपियों की जानकारी प्रदान करना। आर्थिक सहायता राशि देकर अथवा किसी भी उपेक्षित तीर्थ/स्मारक के संरक्षण एवं जीर्णोंद्धार हेतु गोद (दत्तक) लेकर। प्रचार-प्रसार सामग्री/शिविर/सेमीनार को अपने सौजन्य से आयोजित करके। मन्दिरों/धर्मशालाओं में प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धार हेतु गोलक रखकर। महासभा कार्यालय से निःशुल्क गोलक मंगाकर अपने घरों एवं व्यापारिक स्थानों में रखें। पंचकल्याणक महोत्सव, पर्युषण पर्व तथा अन्य किसी विशेष शुभ अवसरों पर आयोजित बोलियों का कुछ अंश प्राचीन पुरातन धरोहरों के उद्धार के लिए।1. श्री सम्मेद शिखर जी आंदोलन में सहयोग।
2. सिद्धक्षेत्र गिरनारजी आंदोलन में सहयोग।
3. धर्म संरक्षिणी महासभा द्वारा संस्थापित प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धार कार्यों में संलग्न तीर्थ संरक्षिणी महासभा द्वारा दिनांक ३१.१२.०९ तक समाज से ५,०५६,८५,१८४ (पांच करोड़ छः लाख पिच्चासी हजार एक सौ चौरासी रुपये) प्राप्त करके ४,९६,०४,३८२ (चार करोड छियान्नबे लाख चार हजार तीन सौ बयासी) रु० विभिन्न जैन मन्दिरों के जीर्र्णोद्धार में व्यय किये जा चुके हैं जिसमें करीब १५० प्राचीन तीर्थ/मंदिर/मूर्तियों का जीर्णोद्धार कराया जा चुका है तथा १५० मंदिरों/तीर्थों का जीर्णोद्धार कार्य चालू है।
4. गुल्लक योजना के अंतर्गत ३१.१२.०९ तक गुल्लकें वितरित कर ५४,६९,०७.४० रुपये प्राप्त कर प्राचीन तीथोर्ं के जीर्णोद्धार कार्य में व्यय किया गया है।
5. संस्था द्वारा प्रतिमाह प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धार पत्रिका की चार हजार प्रतियों का प्रकाशन।
6. संस्था के देश भर में दो हजार सदस्य हैं।
7. भ. महावीर २६००वाँ जन्म कल्याणक महोत्सव वर्ष के दौरान प्राचीन तीथोरं के लिये भारत सरकार से अनुदान प्राप्ति हेतु विशेष प्रयास (प्रयासों से भारत सरकार से दिग. जैन समाज को तीर्थों के विकास हेतु ५६ करोड़ मिले एवं ए एस आई द्वारा जैन तीर्थों पर २० करोड रुपये व्यय किये गये)।
8. महासभा के सहयोग से लखनऊ राज्य संग्रहालय में जैन कला वीथिका की स्थापना। गोरखपुर एवं झांसी राज्य संग्रहालय में जैन कला वीथिका का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
9. मोहन्द्रा (पन्ना) म.प्र. एवं सीरोन जी (मडावरा में) जैन संग्रहालय की स्थापना। शास्त्रों में लिखा है एवं आचार्यों ने भी कहा है कि सौ नये मन्दिरों का निर्माण कराने से जो पुण्य अर्जित होता है उससे कई गुना अधिक पुण्य एक प्राचीन जीर्णशीर्ण मन्दिर के जीणर्द्धार कराने से होता है। यह प्राचीन जिन मन्दिर हमारे पूर्वजों की धरोहर और धर्म के प्रतीक हैं, इनकी सुरक्षा करना हम सबका प्रथम पुण्य कर्तव्य है। पुरातन सम्पदा जिसमें मन्दिर/ स्मारक/मूर्तियाँ/शिल्प/शिलालेख एवं पाण्डुलिपियां हमारी पहचान हैं। यह धर्म - संस्कृति की सदैव प्रेरक एवं आत्म - कल्याण में सहायक हैं। आपकी यह तीर्थ संरक्षिणी महासभा प्राचीन जैन स्मारकों/मन्दिरों के प्राचीन मूलस्वरूप को अक्षुण्ण रखते हुए जीर्णोद्धार/संरक्षण /संवर्द्धन करने में प्रयासरत है। आईये, आप भी इस संस्था को तन - मन - धन से सहयोग देकर पुरा धरोहर के संरक्षण में सहभागी बनें।